छठ पूजा कब है 2018


छठ पूजा कब है 2018


लोक आस्था का महापर्व छठ का आरंभ 13 नवंबर 2018 यानि सोमवार से शुरू हो रहा है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला यह चार दिन का पर्व खाए नहाय के साथ शुरू होता है. तड़के महिलाएं नदियों और तालाबों के तट पर जुट जाती हैं. इस साल छठ 13 नवंबर को नहाय खाए से शुरु हो रहा है. 13 नवंबर को खरना मनाया जाएगा. इसके बाद छठ व्रती 14 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी और 15 नवंबर को सुबह का अर्घ्य देने के बाद अरुणोदय में सूर्य छठ व्रत का समापन किया होगा. आईए जानते हैं इस चार दिन के पर्व के हर दिन के महत्‍व के बारे में... 
पहला दिन : 
खाए नहाय, छठ पूजा व्रत का पहला दिन. इस दिन नहाने खाने की विधि की जाती है. इस दिन स्‍वयं और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है. लोग अपने घर की सफाई करते हैं और मन को तामसिक भोजन से दूर कर पूरी तरह शुद्ध शाकाहारी भोजन ही लेते हैं. देव सूर्य मंदिर... यहां उमड़ती है छठ व्रतियों की भीड़
दूसरा दिन 
खरना, छठ पूरा का दूसरा दिन होता है. इस दिन खरना की विधि की जाती है. खरना का मतलब है पूरे दिन का उपवास. व्रती व्‍यक्ति इस दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता. शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है.
तीसरा दिन 
इस दिन शाम का अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य षष्ठी को छठ पूजा का तीसरा दिन होता है. आज पूरे दिन के उपवास के बाद शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. मान्‍यता के अनुसार शाम का अर्घ्य के बाद रात में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा भी सुनी जाती है.
चौथा दिन 
छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन सुबह का अर्घ्य दिया जाता है. आज के दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचना होता है और उगते सूर्य को अर्घ्य देना होता है. अर्घ्य देने के बाद घाट पर छठ माता से संतान-रक्षा और घर परिवार के सुख शांति का वर मांगा जाता है. इस पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर फिर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं...

Chhath Puja Story in Hindi छठ पूजा की कथाएं

प्रति वर्ष दीपावली के बाद छठ महापर्व का अनुष्ठान किया जाता है. यह लोक आस्था का महान पर्व है. यह कार्तिक महीने के षष्ठी को मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से चार दिनों तक चलता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी को और समापन सप्तमी को होता है. इसे कार्तिक छठ कहा जाता है. इसके अलावे चैत मास में भी छठ पूजा होती है जिसे चैती छठ कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी उषा को छठी मैया कहा जाता है, इनकी पूजा सूर्यदेव की पूजा के साथ ही साथ की जाती है. छठ व्रत करनेवाले व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है. छठी मैया उनके परिवार और संतान की रक्षा करती हैं.

आइये जानते हैं छठ महापर्व से जुडी कहानियां जो इसके महत्व को दर्शाता है:

भगवान सूर्य के आशीर्वाद से राजा प्रियव्रत को संतान प्राप्ति

बहुत प्राचीन समय की कथा है. एक बहुत प्रतापी राजा हुए. उनका नाम प्रियव्रत था. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. लेकिन उस दम्पती को कोई संतान नहीं थी. महामुनि कश्यप के आदेश पर उन लोगों ने पुत्र प्राप्ति यज्ञ किया. पुत्र भी हुआ, लेकिन मृत पैदा हुआ. इस घटना से राजा और रानी अति विचलित हो गये और अपने -अपने प्राण त्यागने की सोचने लगे. उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई. उन्होंने राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं. इसीलिए उनको षष्ठी कहा जाता है. उनकी पूजा करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा और रानी ने बहुत ही नियम और निष्ठापूर्वक छठी माता की पूजा की और उनको एक सुन्दर-सा पुत्र की प्राप्ति हुई . यह पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को की गयी थी. कहा जाता है कि तभी से छठ पूजा की जाती है.

माता सीता ने भी की थी छठ पूजा

बात त्रेता युग की है. दशानन रावण का वध करके भगवान् राम विजयादशमी के दिन अयोध्या पहुंचे और उनकी वापसी की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है. लंका युद्ध में बहुत सारे लोगों का संहार हुआ था. रावण और उसके भाइयों का प्रभु श्रीराम ने विनाश किया. गुरु और ऋषियों की सलाह पर रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान् राम ने राजसूय यज्ञ किया. इस यज्ञ में ऋषि मुद्गल भी अयोध्या पधारे. ऋषि मुद्गल ने माता सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को सूर्यदेव के उपासना करने का आदेश दिया. माता सीता ने उनके आश्रम में रहकर छः दिनों तक भगवान सूर्य की पूजा की. तभी से इस दिन छठ पर्व मनाया जाने लगा.

दानवीर कर्ण ने भी की थी सूर्य की उपासना और छठ पूजा

महाभारत में भी छठ पूजा और सूर्य पूजा के उदहारण मिलते हैं. कहा जाता है कि दानवीर कर्ण ने छठ पूजा की शुरुआत की थी. कर्ण को सूर्यपुत्र भी कहा जाता है. वे सूर्य के बहुत बड़े उपासक थे. कहा जाता है कि वे प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते है और अपने द्वार पर आये याचक को दान करते थे. वे प्रतिदिन घंटों कमर तक गंगाजल में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा अर्चना किया करते थे. भगववान सूर्य और छठी माता की कृपा से वे एक महान योद्धा बने.

द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा

जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी. छठ पूजा के उपरांत इसका फल मिला और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया और उन्होंने बहुत लम्बे समय तक हस्तिनापुर पर राज किया. इन सभी कथाओं से छठ पूजा की प्राचीनता और महत्ता का पता चलता है. आज यह पर्व देश और विदेशों में भी मनाई जाती है. यह पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मुंबई, दिल्ली, न्यूयॉर्क आदि जगहों पर मनाया जाता है. इस पर्व में लोक मंगल के तत्त्व समाहित है. सूर्य उपासना से जीवन को नव उर्जा मिलती है. छठ माता हम सब पर अपनी कृपा बनाये रखें, देश का विकास हो, सर्वत्र सुख और शांति रहे. यही छठ माता से हमारी प्रार्थना है.

Chhath Puja Story in Hindi छठ पूजा की कथाएं

प्रति वर्ष दीपावली के बाद छठ महापर्व का अनुष्ठान किया जाता है. यह लोक आस्था का महान पर्व है. यह कार्तिक महीने के षष्ठी को मनाया जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से चार दिनों तक चलता है. इसकी शुरुआत चतुर्थी को और समापन सप्तमी को होता है. इसे कार्तिक छठ कहा जाता है. इसके अलावे चैत मास में भी छठ पूजा होती है जिसे चैती छठ कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी उषा को छठी मैया कहा जाता है, इनकी पूजा सूर्यदेव की पूजा के साथ ही साथ की जाती है. छठ व्रत करनेवाले व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है. छठी मैया उनके परिवार और संतान की रक्षा करती हैं.

आइये जानते हैं छठ महापर्व से जुडी कहानियां जो इसके महत्व को दर्शाता है:

भगवान सूर्य के आशीर्वाद से राजा प्रियव्रत को संतान प्राप्ति

बहुत प्राचीन समय की कथा है. एक बहुत प्रतापी राजा हुए. उनका नाम प्रियव्रत था. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. लेकिन उस दम्पती को कोई संतान नहीं थी. महामुनि कश्यप के आदेश पर उन लोगों ने पुत्र प्राप्ति यज्ञ किया. पुत्र भी हुआ, लेकिन मृत पैदा हुआ. इस घटना से राजा और रानी अति विचलित हो गये और अपने -अपने प्राण त्यागने की सोचने लगे. उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई. उन्होंने राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं. इसीलिए उनको षष्ठी कहा जाता है. उनकी पूजा करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी. राजा और रानी ने बहुत ही नियम और निष्ठापूर्वक छठी माता की पूजा की और उनको एक सुन्दर-सा पुत्र की प्राप्ति हुई . यह पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को की गयी थी. कहा जाता है कि तभी से छठ पूजा की जाती है.

माता सीता ने भी की थी छठ पूजा

बात त्रेता युग की है. दशानन रावण का वध करके भगवान् राम विजयादशमी के दिन अयोध्या पहुंचे और उनकी वापसी की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है. लंका युद्ध में बहुत सारे लोगों का संहार हुआ था. रावण और उसके भाइयों का प्रभु श्रीराम ने विनाश किया. गुरु और ऋषियों की सलाह पर रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान् राम ने राजसूय यज्ञ किया. इस यज्ञ में ऋषि मुद्गल भी अयोध्या पधारे. ऋषि मुद्गल ने माता सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को सूर्यदेव के उपासना करने का आदेश दिया. माता सीता ने उनके आश्रम में रहकर छः दिनों तक भगवान सूर्य की पूजा की. तभी से इस दिन छठ पर्व मनाया जाने लगा.

दानवीर कर्ण ने भी की थी सूर्य की उपासना और छठ पूजा

महाभारत में भी छठ पूजा और सूर्य पूजा के उदहारण मिलते हैं. कहा जाता है कि दानवीर कर्ण ने छठ पूजा की शुरुआत की थी. कर्ण को सूर्यपुत्र भी कहा जाता है. वे सूर्य के बहुत बड़े उपासक थे. कहा जाता है कि वे प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते है और अपने द्वार पर आये याचक को दान करते थे. वे प्रतिदिन घंटों कमर तक गंगाजल में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा अर्चना किया करते थे. भगववान सूर्य और छठी माता की कृपा से वे एक महान योद्धा बने.

द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा

जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी. छठ पूजा के उपरांत इसका फल मिला और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया और उन्होंने बहुत लम्बे समय तक हस्तिनापुर पर राज किया. इन सभी कथाओं से छठ पूजा की प्राचीनता और महत्ता का पता चलता है. आज यह पर्व देश और विदेशों में भी मनाई जाती है. यह पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मुंबई, दिल्ली, न्यूयॉर्क आदि जगहों पर मनाया जाता है. इस पर्व में लोक मंगल के तत्त्व समाहित है. सूर्य उपासना से जीवन को नव उर्जा मिलती है. छठ माता हम सब पर अपनी कृपा बनाये रखें, देश का विकास हो, सर्वत्र सुख और शांति रहे. यही छठ माता से हमारी प्रार्थना है.

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